जिदंगी की किताब
जिदंगी की किताब
ज़िंदगी की किताब में अपनापन देखता रहा,
अक्षरों में अपने ह्दय की धड़कन देखता रहा ।
ज़िंदगी बहुत खूबसूरत हुआ करती थी हमारी,
खुली आँखों से ज़िंदगी का परिवर्तन देखता रहा ।
दिल ख़ुदा ने शायद उन्हें दिया ही नहीं .......,
शहर मेरा इश्क की मजाक बन देखता रहा ।
मेरे शहर में आये वो और मुझसे मिलें ही नहीं,
हल्का हल्का सा था दर्द उदास मन देखता रहा ।
वो कहते थे मुझे देखो चाँद कितना पागल है,
रात को हौले से वो निकला गगन देखता रहा।
वो चला मेरे दर से कुछ सामान साथ ले गया,
हवाओं का अजीब बदला रूख चमन देखता रहा ।
ऑखों से निकल पड़े थे याद में उनके ऑसू,
दिल में जल रही थी आग मैं दहन देखता रहा । ।

