जिद्दी मन
जिद्दी मन
सार यही है मनुष्य के जीवन का
खाली हाथ आया दुनिया में खाली हाथ धरा से जाना है
लाख प्रयत्न करने पर भी साथ न किसी ने निभाना है
न जाने क्यूँ ये जिद्दी मन ने नहीं जाना है
हाथ थामने आये कोई जीवन में
क्षण भर के लिए वो दीवाना है क्षण भर के लिए बेगाना है
फलक तक चलने साथ तुम्हारे का वादा भले निभाना है
न जाने क्यूँ ये जिद्दी मन ने नहीं जाना है
जाने वाला चला जाये जहाँ से
किसी के लिए बेवक़ूफ़ था और किसी के लिए सयाना है
था जिसका हमराही अब उसे अकेले जीवन को निभाना है
न जाने क्यूँ ये जिद्दी मन ने नहीं जाना है
धोखेबाजी करते अपनों से लोग
मृग मरीचिका तृष्णा भाँति प्यार या सच कोई अफ़साना है
नारी तो संयम की देवी परमेश्वर मान रिश्ता उसको निभाना है
न जाने क्यूँ ये जिद्दी मन ने नहीं जाना है