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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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झूठ बेईमानी और मक्कारी रग रग में भरा है पैकारों का यारी

झूठ बेईमानी और मक्कारी रग रग में भरा है पैकारों का यारी

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झूठ बेईमानी और मक्कारी

रग रग में भरा है पैकारों का यारी

उस पर न कभी विश्वास करना

वह कैंची चाकू छुरी से करता है व्यापारी।।


मौका मिलते ही कर लेता है

डन्नी का मारामारी

चाहे उसे अपना लो या कुछ भी 

वह धूर्त दलाल करता नहीं सच्चा व्यापारी।।


हंड्रेड परसेंट का भरोसा देकर

करता है झूठ का बांड जारी है

हेरा फेरी में नंबर वन

चाटुकार कमीना कपटी होता है व्यापारी।।


कभी नहीं कभी नहीं

होना उसका जवान पर आभारी

बूंद बूंद में होता है उसका

छल कपट का वास प्यारी।।


लाखों की मेहनत को

कर देता है वह सुन्न थोड़ी

हां इतना ही कमीना होता है

कपटी छलिया नीच पैकार और व्यापारी।।


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