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Kalyani Nanda

Abstract

4.2  

Kalyani Nanda

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जायका जीवन का

जायका जीवन का

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जीवन के पथ पर चलना आसान नहीं,

कहीं फूल है तो कहीं कंकड़,

कभी गम के कोहरे छाये,

कभी खुशियों के बादल,

कुछ दुःख तो कुछ सुख है,

जिन्दगी से मृत्यु की लम्बी राहों पर,

लोगों का आना, जाना लगा रहता है,

ये जीवन है, जैसा भी है , इसे जीना है ।


रिश्ते यहाँ बनते हैं, रिश्ते बिगड़ते भी हैं ,

कुछ आते हैं, कुछ जाते हैं ,

किसी के आने से जब खुश होते हैं,

तो किसी के जाने से गम क्यों करें ?

गुमसुम सी बैठे क्यों ? वक्त को या करें क्यों ?

अकेले बैठ कर, रात के अंधेरे में,

चुपचाप तारे गिन गिनकर, इतना सोचे क्यूँ ?


कभी हंसाती है ये जिन्दगी, कभी रुलाती भी ये जिन्दगी,

कभी ये मीठी है तो कभी तीखी ,

कभी कड़वी तो कभी नमकीन ,

जिन्दगी है ये स्वाद से भरपूर ,

जब लगे यह फीकी फीकी,

तो चलो कुछ रौनक लाएँ ,

कुछ सुकून लाकर जीवन के मजे लें,

जीवन है यह , कुछ जायकेदार इसे बनाएँ,

अगर जीना जरूरी है तो,

फिर बे स्वाद जीवन जीएँ क्यों ? ?




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