जाति या संतान ?
जाति या संतान ?
जाति धर्म रंग आय देखकर रिश्ता तुम जोड़ते हो,
फिर शादी में साथ देखकर जोड़ियाँ ऊपरवाला बनाता है तुम कहते हो !
अपनी औलाद की पसंद पर सवाल तुम उठाते हो,
कारण पूछने पर जाति अलग है बताते हो ।
तुम्हारी संतान प्यार और आशीर्वाद तुम्हारा चाहती है,
इसलिये सारे डर को भूलकर अपनी पसंद तुम्हे बताती है ।
तुम्हें परवाह नहीं तुम्हारी संतान क्या चाहती है,
बस इस बात से फर्क पड़ता है कि दुनिया क्या कहती है।
तुम रिश्ता उसका तय करदेते हो,
ओपचारिकता के रूप में उसको निर्णय अपना बताते हो !
जो उसने मना करदिया,क्या उसकी ज़िन्दगी पर हक़ नही तुम्हरा पूछते हो ?
जो वो न माने,माँ बाप हो उसके गलत नहीं चाहोगे तुम कहते हो।
लेकिन यह न समझ सकते तुम,ज़िन्दगी उसे ही काटनी है,
चाहे कुछ भी होजाये,उस इंसान के साथ
उसे ही ज़िन्दगी अपनी बाँटनी है।
माना उसको लेकर कभी तुम्हरा इरादा गलत नहीं होता है ,
पर हमेशा सिर्फ़ इरादा सही होना ही ज़रूरी नहीं होता है,
कभी कभी उसका प्रभाब ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है,
इन सब के चलते संतान तुम्हारी ज़िन्दगी अपनी गवा देता है।
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अपनी औलाद की पसंद को परखो तुम,
उसकी कठिन परीक्षा लो तुम।
पर जाती धर्म को आधार न बनाओ,
इस जाती भेद को अपने मन से हटाओ।
माँ बापू जाती धर्म के नाम पर तुमने उसे ही बेच दिया,
ये न समझे भगवान ने इंसान की बनावट में कोई भेद न किया ।
जब बनाने वाले ने कोई अंतर नहीं किया,तो तुम कौन होते हो अंतर करने वाले ?
इंसान को हिन्दू-मुसलमान,ब्राह्मण-क्षत्रिय में वर्गीकरण करने वाले।
ओलाद है तुम्हारी,बुरा उसका नहीं चाहोगे,
पर अनजाने में उसकी पसंद को जाती के नाम पर ठुकराकर, तुम ही उसे सबसे ज़्यादा रुलाओगे।
माँ बाप की इज़्ज़त का सोचकर ससुराल वो न छोड़पायेगी,
हर पल तकलीफ़ सह सहकर खुदको वो तड़पायेगी।
उसका दर्द तुम्हें ही सबसे ज़्यादा दर्द पहुंचायेगा,
बाहरवालो के लिए तभी भी वो सबसे बढ़िया रिश्ता कहलायेगा ।
जिन लोगों का सोचकर जाती भेद कर के अपनी औलाद की पसंद माँ बाप ठुकरादेते है,
वह लोग तकलीफ में साथ निभाने नहीं बस ताने देने आते हैं।
सोचना है तो दुनिया की नहीं अपनी औलाद की खुशियों की तुम सोचो,
ऊपरवाला भी यही कहता की जाती भेद के पिंजरे से तुम बचो ।