जानवर और इंसान
जानवर और इंसान
गले लगाते, चूमते, गोद में लिटाते
हाथ से खिलाते, हाथ से पिलाते
देसी, विदेशी नस्लों के कुत्तों को
जो प्यार से सहलाते, दुलारते
ऐ. सी. का लुत्फ उठवाते
महंगे बिस्किट्स का सेवन करवाते
करते लाखों खर्च उनके रहन पर
पालते उन्हें अपने जनों से भी बढ़कर
करते उनकी सेवा प्रियतमों से हटकर
उनके तकलीफ में होने पर
आंसू बहाते खुलकर
ऐसे डॉग लवर्स का अपना ढंग निराला है
वो ही करते नफरत, दुत्कारते एक गरीब इंसान को
गरीब असहाय जानकर
फेर लेते मुँह उनकी तरफ से
जैसे कोई खजला जानवर
आ जाता कोई जब गरीब भिखारी
और मेहनतकश इंसान उनकी
ऑडी, बी ऍम डब्लू के पास
शीशा चढ़ा के दुत्कारते कुत्ता समझकर
क्यों नहीं खुश होते उनकी मदद कर
जो खर्चते लाखों कुत्तों के रहन पर
नहीं जाती उनकी नजर
कभी अपने गिरेबान पर
जो सना होता, डूबा होता
एक गरीब मजदूर के पसीने की कमाई पर
ये कैसा प्यार ये कैसा दुलार
जानवर और इंसान को नहीं बराबर
माना के इंसान दगा करता, धोका करता
मगर इंसान तो इंसान है, गरीब अमीर का होना उस की कहानी है
जो एक ईश्वर की निशानी है
करता जो भेद उनमें उनका
खून खून नहीं पानी है।