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अच्युतं केशवं

Abstract

5.0  

अच्युतं केशवं

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जानता हूँ मैं नहीं हूँ अंशुमाली

जानता हूँ मैं नहीं हूँ अंशुमाली

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जानता हूँ मैं नहीं हूँ अंशुमाली

दीप हूँ मैं रात भर जलता रहूँग।


जानता हूँ मैं नहीं हूँ अंशुमाली।

बल कहाँ इतना मिटा दूँ रात काली।

प्रिय तुम्हारा नेह किंचित पा सका तो,

ले यही पाथेय मैं चलता रहूँगा।

दीप हूँ,

मैं रात भर जलता रहूँगा।


मैं नहीं हूँ हंस मानस तीर का।

ज्ञान है ना नीर एवं छीर का।

किन्तु यदि विश्वास के मुक्ता मुझे दो,

बन अमर आशा ह्रदय पलता रहूँगा।

दीप हूँ,

मैं रात भर जलता रहूँगा।


मैं न मलयज कि नवल आह्लाद दूँगा।

नरम झोंकों से मिटा अवसाद दूँगा।

साथ रहने का मुझे अधिकार दे दो,

यह वचन है मैं विजन झलता रहूँगा ।

दीप हूँ,

मैं रात भर जलता रहूँगा।


ना हिमल ना श्यामघन चातुर्यमासी।

क्या मिटाऊँ तव तृषा तेरी उदासी।

किन्तु सादर ले सको लो अंजुरी में,

एक लघु हिमखण्ड सा गलता रहूँगा।

दीप हूँ,

मैं रात भर जलता रहूँगा।



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