जान लेते हैं
जान लेते हैं
पलकों के पर्दे से भी
अश्क़ पहचान लेते हैं
हाल ए दिल आवाज़
से ही जान लेते हैं
सोचती हूँ सुधर जाऊँ
छोड़ दूँ आशिक़ी
मगर वो लूट कर मेरा
दीन ओ ईमान लेते हैं
कहती हूँ दिल को कि
लग जाये और कहीं
और वो मिलकर प्यार को
फिर परवान देते हैं
ज़माने से होकर बदगुमान
दिल मायूस जब हो तो
अपनी बातों से फिर
हौसलों को फ़िर उड़ान देते हैं
कभी बेज़ार होती हूँ ए
हसास ए कमतरी से
एतमाद अहमियत दिखा कर
मुझे एक गुमान देते हैं
मेरी गुस्ताखियों को
नादानियां कहकर
मुहब्बत से इक बार
फ़िर मिरी जान लेते हैं