जान की जान
जान की जान
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जान, अपनों की जान
बचाने में लगी है
गहरे-गहरे जख्मों के,
घाव सहलाने में लगी हैं।
ना आव देखती,
ना ताव देखती है जान
जान तो बस, जान की
जान बचाने में लगी हैं।
बिक रही है बाजार में,
दौलतमंद राव की दौलत
मौत तो दौलत-शौहरत के,
दरकिनार में लगी है।
बेचारगी रहम की दया दृष्टि में,
तेरे आँचल की छाँव में लगी हैं।