इज़हार
इज़हार
मैं आज तुझसे तुझे मांगना चाहती हूँ।
तेरे जिस्म से नही तेरी रूह से मोहब्बत करना चाहती हूँ
तेरी आँखों की वो नमी ले तेरे होठों की मुश्कान बनना चाहती हूँ
जिस राह पे तू रोज़ जाता है में वो मंज़िल बनना चाहती हूँ
तेरे लिखे हर अक्षर को मिला मैं वो कविता बनना चाहती हूँ
तेरी हर कामयाबी के पीछे की वजह बनना चाहती हूँ
तेरी परेशानियों से दूर तेरे चेहरे का वो सुकून बनना चाहती हूँ
तुझ पर आई हर विपदा की मैं वो ढाल बनना चाहती हूँ
तेरे छेड़े हर सुर का संगीत बनना चाहती हूँ
तेरी रातों की वो नींद से लेकर तेरे सुबह की रोशनी बनना चाहती हूँ
तू चाहे मुझे अपना माने न माने
आज में तुझे अपनी जिंदगी से बढ़ कर बनना चाहती हूँ
तुझसे उस खुदा से ज्यादा मोहब्बत करने की खता करना चाहती हूँ
जाना कोई ज़ोर नही मेरा तुझ पर फिर भी एक फरियाद करना चाहती हूँ
मैं आज तुझसे तुझे मांगना चाहती हूँ।