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Manju Rani

Tragedy Inspirational

4  

Manju Rani

Tragedy Inspirational

इतनी यंत्रणा कहाँ से लाई?

इतनी यंत्रणा कहाँ से लाई?

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मेघ आए इंद्र के घर

बरसे इस संवत या नहीं ?

इस बरस,

बरस गई अँखियाँ कहीं

इतनी बरसी की धरा नहा गई ।

अब कहाँ बरसूँ !

इतनी वेदना,

इतनी यंत्रणा कहाँ से लाई ?

क्या सह गई मानव पुत्री

कि अश्रु की झड़ी लग गई,

चाह कर भी मुस्कान के

अंकुर फूटते नहीं,

गमों को कफन पहनाते नहीं ।

इतना सहा की झरने बह गए,

तटिनयों के तट टूट गए,

बरसों से गाते उस सुरमई

साज के तार बिखर गए ।

जो अपने में तूफान समेटे थे

वे गंगाजल सुनामी-से बह गए,

पर उसके अंदर सुलगते रिश्ते

बगावत ना कर सके

और नैनों के बांध टूट गए ।

उस तबाही के हम

दर्शकगण बन गए ।

होंठों पर लगे ताले

खुल गए, तो

बेवफाई के किस्से

लोगों के जहन में उतर गए ।

मानव क्या, वन, वारी,

बरखा, बादल सब नम पड़ गए,

पर उस संगिनी, उस रुक्मणी,

उस गृहिणी की

व्यथा कम न कर सके ।

वंचना के निर्मम तीर

निकालने की चेष्टा न कर सके

क्योंकि

ये तीर निकाले नहीं जाते

बस हृदय को झेलने पड़ते

न झिले तो छलक ही जाते ।

पर वंचक

ये विध्वंस देखते ही रहते,

धरणी यूँ ही अश्रुओं से

गीली होती ही रहती ।


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