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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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इतनी सी बात

इतनी सी बात

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इतनी सी बात से खिन्न होकर कि

कोइ मुझसे बात नहीं करता,

सुबह बोल उठी मुझसे,

कहने लगी

मैं हूँ न तुमसे बात करने को।

वैसे भी मुझे वो लोग

पसन्द हैं

जो खुद को जानते हैं

या खुद को जानने की दिशा में सक्रिय रहते हैं

पल पल।

कभी अपने को अकेला मत समझना, 

जब कभी उबने लगो

 खुद के अकेलेपन से

कहना सुबह कहां हो।

मैं हाजिर मिलूंगी

एक सुंदर विचार की तरह

एक सुंदर समझ की तरह

एक सुंदर दोस्त की तरह।

तुम्हे लगने लगेगा 

खामोशी बोल रही है

एककीपन सबसे दिलचस्प चहलपहल है

और तुम्हारा दोस्त तुम्हारे पास है

साथ साथ है।


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