इतना गलत भी न था.....
इतना गलत भी न था.....
मैं सही तो नहीं था मगर, इतना ग़लत भी न था,
की लोग हर कदम, एक नया मोड़ तलाशते रहे।
मन किया तो पूछ लिया, वैसे तो अक्सर टालते ही रहे,
मैं मक़सूद तो नहीं था मगर, इतना मंसूब भी न था।
मैं सही तो नहीं था मगर, इतना ग़लत भी न था…..
तबीयत थोड़ी अलग थी, मकसद तो एक ही था,
ख्वाब ज़ुदा से थे थोड़े, ताबीर तो एक सा ही था।
राह साथ चले थे लोग, मगर मंज़िलें मुक्तलिफ़ हो गयीं,
मैं साथी तो नहीं था मगर, किसी का रक़ीब भी न था।
मैं सही तो नहीं था मगर, इतना ग़लत भी न था…..
मुझमें कुछ रात सा था, मगर मैं सियाह तो न था,
दर्द तो था बहुत मुझमें, पर मैं दर्द की दवा भी था।
मेरे साये में, थी राहत भी, मगर लोग बेबसी ही समझे,
मैं हक़ीक़त तो नहीं था मगर, मैं कोई गुमाँ भी न था।
मैं सही तो नहीं था मगर, इतना ग़लत भी न था…..