इश्क़
इश्क़
बहती जा रही हूँ तेरे प्यार में,
किनारा तुझे मानकर।
घर की बंदिशें हैं, समाज के भी नियम है
मन का भी अपना एक डर है।
ग़र पार की मैंने दहलीज़ अपनी,
और तुमने बदल ली राह अपनी
तो मैं किस ओर जाऊंगी?
वापिस गई तो अपने ही पिता द्वारा ठुकराई जाऊंगी।
यूँ ही रही अकेली सड़क पर तो,
ना जाने कितनों का शिकार बन जाऊंगी।
बड़ा मुश्किल है ये फैसला ।
एक बात का जवाब दो मुझे,
तुम्हें यकीं है ना अपने इश्क़ पर।
या यूँ ही आकर्षण को इश्क़ समझे जा रहे हो?
एक लड़की के लिए आसान नहीं होता,
इश्क़ करना और उसे मंजिल तक पहुँचाना।