इश्क
इश्क
शरद पूनो को तेरा इंतज़ार था,
रात भर चांदनी में नहाते रहे।
वो मिल मुस्कुराने की तेरी अदा,
हम धोखा मुहब्बत में खाते रहे।
हुई जुदाई, बता क्या था मेरा कसूर
बनकर शमा ख़ुद ही को जलाते रहे।
लगने अपने से लगे अब तो दुश्मन सभी
दोस्त मेरे, दिल में खंज़र घुसाते रहे।
इस क़दर अश्कों से हुई आँखें नम
आईने दिन ब दिन धुंधलाते रहे।
है अंधेर नगरी क्यूँ दुनिया ख़ुदा
'नीलम' सपने ही आँखों से जाते रहे।