इश्क़ मोहब्बत
इश्क़ मोहब्बत
चँदनी कि रोशनी पर बादलों का मँडराना देखा है
अवरोधित आभा का रूठ कर छुपना देखा हमने
क्षितिज पर धीरे से तुम्हारे क़दमों कि आहट सुन
पायल कि मदभरी झंकार का एहसास था हमें।
खुदा कि महोब्बत हो या इन्सान मे प्यार भरे जज़्बे
बेपनाह मुहोबत में होते है बदलते, सिमटते रिश्ते
उल्लू कि तरह कब तक आँखें बिछाए रखेगा कोई ?
फ़ुरसत हो तो धड़कते दिल पर मर्हम रख देना सनमा।
बरसते बादल हो या चिलचिलाती धूप का मंनजर तुम
रंगों में इंद्र धनुष सी खिलती हँसी बिखेरती रहना सनम !