इश्क की बेरुखी
इश्क की बेरुखी
इश्क के भंवर में मुझे फसाकर,
जन्नत के इतने करीब लाकर।
जालिम दुनिया के डर से मुझे छोड़ कर,
क्यों किया तूने मुझे अपने से दरकिनार।
ऐसी बेरुखी करने घड़ी लानी ही थी,
तो जलवे दिखानी की क्या बला जरूरत थी।
मेरा प्यार अगर इतना ही नागवार था,
प्यार में मुझे आवारा बनाने की क्या पड़ी थी ?
तेरा, मेरे साथ सहज होना तेरे मजबूरी थी,
क्या इश्क की सजा देने की वो तेरी बेवफाई थी।
मेरी नासमझ को समझ बनाना एक तेरी भूल थी,
ऐसी हसीन भूल करने की तुझे क्यों हड़बड़ी थी ?।
पहले तो तूने मेरे भावनाओं को जगाया,
जीवित भावनाओं को अदाओं से घायल किया।
फिर उसे अपने अदाओं से सिंचित किया,
फिर पायल की झंकार से उसे रोमानी किया।
तेरे चूड़ियों की आहट से मैं हुआ दीवाना,
इश्क की तरंगें छेड़ने लगी थी तराना।
जब प्यार में मैंने सीखा था तैरना,
लेकिन तूने मुझे बनाया मुर्दा खिलौना।
जब तेरे-मेरे सपनों का आसमान,
झूमकर छूने लगा प्यार का तूफान।
तब तूने मेरे कुचल कर अरमान,
छोड़ दिया वादियों में उन्हें होने को दफन।