इस शहर में आज अंधेरी रात क्यों
इस शहर में आज अंधेरी रात क्यों
उस चौराहे पर मैं आज फिर ठहरा हूं,
जहां हाथ में हाथ डाले मैं कभी टहला हूं।
गोद में सिर रखकर जो नीर बहाए थे यहां,
उन्हीं की खोज में रोज यहां से गुजरा हूं।
तेरे मेरे किस्से जो मशहूर थे इस शहर में,
इस भीड़ में तेरा ही चेहरा ढूंढ़ रहा हूं।
कुछ लम्हें तुमने लिखे कुछ मैंने लिखे,
वो कलम लिए रोज यहां बैठ रहा हूं।
ख़्वाब में तेरी मूरत संजोए ध्यान आया,
इस शहर में आज अंधेरी रात क्यों है ?
आंखों में आंख डाले जो स्वप्न बुना था,
जेठ की दोपहरी में ये बरसात क्यों है ?
तुम गए तो शहर की फिज़ा बदल गई,
हर सख्श की निगाहें बेईमान सी क्यों है ?