इस दीवाली..सेवा के दो दीप ..!
इस दीवाली..सेवा के दो दीप ..!
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दीप ही ज्योति का अंतिम तीर्थ है,
उसके समक्ष उसका स्व जीवन भी व्यर्थ है,
कीट भी ज्योति का रसिक,
प्राणों की चिंता नही तनिक,
अर्थात दीपावली पर्व है परमार्थ का
त्याग और नि:स्वार्थ का,
आओ इस संदेश को गुढें
स्वहित से परहित को बूझें,
अंधकार को कुछ यूं भगाए,
परसेवा के दो दीप जलाएँ
ईश्वर की सर्वोत्तम कृति को
इस दीवाली , मानवता का पाठ पढ़ाएं ..!