इस बार मैं अकेली हूँ
इस बार मैं अकेली हूँ
दिलरुबा बन दिल की
इस बार मैं अकेली हूँ
प्रीत संग प्रेम की डोरी
पिया संग बंध गया मन
मिलन की रैन गई बीत
दिल की दिलरूबा बन
इस बार मैं अकेली हूँ।
सेज का साज-श्रृंगार
सोलहों कलाओं जैसा
फ़कत नींद लग गई अंग
सुनहरे ख्याल के सवाल सी
इस बार मैं अकेली हूँ।
वो सो रहा था चैन से
मेरी नींद को लिए हुए
सोचती रही करवटें
बदल-बदलकर रात भर
इस बार मैं अकेली हूँ।
बंद आँखों से देख मुझे
मुस्कुराने लगा था वो
उसके शरारती नज़रों से
घायल हो कर भी
इस बार मैं अकेली हूँ।