STORYMIRROR

Dinesh Dubey

Abstract

4  

Dinesh Dubey

Abstract

इंतकाम

इंतकाम

1 min
364


इंतकाम हम ले रहे हैं,

खुद अपने आप से,

कभी हम न दूर हुए,

अपने मन के पाप से।


मन है गंदा तो क्या है गंगा,

कैसे रहेगा सब कुछ चंगा,

दुख के हम करीब हो रहे,

सुख को हम है खदेड़ रहे।


अपने ही कर्मों से हम,

निकाल रहे हैं अपना दम,

दूसरों का बुरा चाह कर,

बना रहे जीवन अपना दुष्कर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract