इंसानियत
इंसानियत
ये दुनिया है कितनी खूबसूरत,
जैसे खूबसूरती हो, इसकी ही फ़ितरत।
प्राणियों, पक्षियों और पेड़ों का,
इसी ने तो पालन-पोषण किया है
लेकिन मनुष्य भी कुछ कम नहीं,
उन्होंने भी, अपना अस्तित्व,
स्थापित कर लिया है।
अपनी अद्भुत कला से,
न जाने कितने चमत्कार कर दिखाए,
सबको इतने भाए, कि आखिरकार,
इनके लिए, युद्ध पर उतर आए।
इस भौतिक दुनिया से, इतना अधिक था,
जोड़ लिया लगाव, कि मनुष्यों की,
इस दुनिया के प्रति, बदलने लगा स्वभाव।
आगे बढ़ना चाहते थे, अनसुनी कर,
उन भोले-भाले, मासूम, बेगुनाह लोगों की,
फ़रियाद, मकसद तो केवल था,
कर देना सब कुछ, बरबाद।
युद्ध से सब कुछ, तोड़-मरोड़ दिया था
लेकिन शायद था विस्मरण उन्हें,
कि मनुष्यों के बिना,
यह भौतिक दुनिया, कैसे जुड़े?
शायद भूल गए थे वो,
कि कहते है किसी चीज़ को,
'इंसानियत'!
एक ऐसी चीज़,
जो युद्ध की भावना में भी,
किसी निर्दोश, मासूम पर,
दया करना सिखाती है,
जो कठोर, पत्थर जैसे दिल पर भी,
किसी बेक़सूर के,
इन्साफ़ का रंग चढ़ा दे,
एक मात्र ऐसा नाता, जिससे हम सब,
बँधे हुए है।
एक ऐसी चीज़,
जो आगे बढ़ना तो सिखाए
परंतु किसी को पीछे धकेल कर नहीं।
इसलिए मनुष्य भले ही आगे बढ़े,
किंतु अकेले, या किसी को नीचा
दिखा कर नहीं, सबको साथ लेकर,
किसी को अकेला न छोड़े।
जिस इंसानियत को, उन लोगों ने,
नष्ट कर दिया, उसे हमें जगाना है,
इस दुनिया को, हमारे अस्तित्व हेतु,
एक बेहतर जगह बनाना है।