इंसानियत का इम्तिहान
इंसानियत का इम्तिहान
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चलते थे हजारों हाथ
तो चलती थी ये दुनिया
जब था सबका ही साथ
तो चलती थी ये दुनिया !
अब गुमसुम है सब
ईश्वर ईशु और अल्लाह
सुनसान पड़ी है गलियाँ
सुनसान सारा मुहल्ला !
बैठे है अब घरों मे
महामारी को लेकर
साथ है सिर्फ भय का
कितनी न्यारी है ये दुनिया !
मीलों तक कोई नहीं है
बंद है अब सब मीलें
मालिक भी नहीं मज़दूर नहीं
कामकाज बंद है सारा
मिली है बस मुश्किलें !
क्या होगा नहीं पता
गोदाम जब होंगे खाली
खायेंगे नोच नोचकर सब
इक छोटी सी थाली !
कहते है सबर करो
सफर खत्म नहीं होती
इम्तिहान इंसानियत का
जो छोड़ी नहीं जाती !