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Padma Motwani

Abstract

4.0  

Padma Motwani

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इन्सान

इन्सान

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इन्सान के किरदार कई

कभी वह खिलाड़ी होता

कभी वह मदारी होता।

कभी बहरूपिया बनकर

उदास मन को बहलाता है

नीरसता में रस भर देता है।


कभी तमाशबीन वह बनता

कभी अंधेरे से कुश्ती लड़ता।

कभी स्वभाव के सत्य में रहता

कभी सुकून की तलाश में रहता।

कभी वक्त का मोहताज होता

कभी उसके सिर सरताज होता।


कभी दर दर भटकता फिरता

भी में भी अकेले ही रहता।

व्यथा खुद की समझ न पाता

तब मदद को हाथ बढ़ाता।

जब विश्वास किसी पर करता

तब फरिश्ता वह बन जाता।



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