इंसान कहीं होगा
इंसान कहीं होगा
कभी सोचा नहीं था ऐसा कभी होगा,
इतने बङे जहाँ में अपना कोई होगा,
खामोश चेहरे की पहचान कोई होगा,
इतनी बङे जंगल में इंसान कोई होगा,
नदियाँ तो बहुत बहती हैं रेगिस्तान कहीं होगा,
खुशी के इस जहाँ में दुःख का पैगाम कहीं होगा,
बहते हुए समुद्र में अपना जहाज़ कहीं होगा,
काली अंधेरी रात में प्रकाश कहीं होगा,
राहों में भूख से बिलखता इंसान कहीं होगा,
रावण की इस नगरी में राम कहीं होगा,
इस बेनाम ज़िंदगी में नाम कहीं होगा,
इन बेजान लफ्जों में जान कहीं होगी,
कभी सोचा नहीं था ऐसा कभी होगा,
इतने बङे जहाँ में अपना कोई होगा !