इन्हीं कहावत मुहावरों में
इन्हीं कहावत मुहावरों में


भूला हुआ सुबह का कोई शाम हुए घर आया
कहां-कहां घूमा दिनभर उसने कुछ नहीं बताया।
पूछा नहीं सवाल किसी ने भूला हुआ न माना
मुहावरा बन गया इसे दोहराता रहा जमाना।
कोई भी घटना विशेष जब चर्चा में आती है
मुहावरा वह बार-बार घटने पर बन पाती है।
दिन भर भूल शाम को ही क्यों लोग लौटते होंगे
सच है अकथ अबूझ कहीं कुछ भोग लौटते होंगे।
खोजो संस्कृति के हमने जो सत्य बचाए त्यागे
इन्हीं कहावत मुहावरों में छिपे हुए हैं धागे।