इल्तजा
इल्तजा
व्याकुल विह्लल अवस्था है
सबकी अपनी अपनी व्यथा है
हर लम्हा तन्हा है
व्यर्थ का क्यों रोना है
मायूसी तो नाकारा है
फकत तसव्वुर में ही इसका ठिकाना है
खुश आबोहवा की तमन्ना है
शत-प्रतिशत यही तो तमन्ना है
झरोखों से रोशनी की इब्तिदा है
क्या यह सिर्फ कल्पना है
या कि मेरी मुझसे ही इल्तजा है।