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parag mehta

Abstract

5.0  

parag mehta

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इजाज़त सच की !

इजाज़त सच की !

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आज इजाज़त मिली है मुझे,

सच कहना है, यह कहा है !

झूठ भी कभी बोलै नहीं वैसे,

आज राज़ भी खोल देने को कहा है !


देर नहीं करनी अब मुझे फिर,

क्या पता जो अगर मन बदल जाए !

जो भी हो फैसला,मुझे मंज़ूर होगा,

इससे पहले की फासले बढ़ जाए !


ख़ूबसूरती बयान नहीं करनी,

किताबें छप चुकी हैं उसपे !

पर अगर शायर ने शायरी ना कही,

तो दूकान फिर बंद हो चुकी उसकी !


और फिर इतने सब्र के बाद है मिला,

ये मौका मैं गवां नहीं हूँ सकता !

कहा था उसने दिल ना दुखाना,

तो सच बयां मैं कर नहीं सकता !


अब फिर कहना क्या है ? ये सोचता हूँ,

दिल भी रख जाऊं, ऐसा कहता हूँ !

सच बोलने का वादा किया है,

झूठ कैसे बोल पाऊं ? ये सोचता हूँ !


अब बात आ कर रूकती है यहां,

होगा जो भी अंजाम, देख लेंगे !

इजाज़त आज सच बोलने की मिली है,

तो चलो आज फिर सच ही कह देंगे !


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