इजाज़त सच की !
इजाज़त सच की !
आज इजाज़त मिली है मुझे,
सच कहना है, यह कहा है !
झूठ भी कभी बोलै नहीं वैसे,
आज राज़ भी खोल देने को कहा है !
देर नहीं करनी अब मुझे फिर,
क्या पता जो अगर मन बदल जाए !
जो भी हो फैसला,मुझे मंज़ूर होगा,
इससे पहले की फासले बढ़ जाए !
ख़ूबसूरती बयान नहीं करनी,
किताबें छप चुकी हैं उसपे !
पर अगर शायर ने शायरी ना कही,
तो दूकान फिर बंद हो चुकी उसकी !
और फिर इतने सब्र के बाद है मिला,
ये मौका मैं गवां नहीं हूँ सकता !
कहा था उसने दिल ना दुखाना,
तो सच बयां मैं कर नहीं सकता !
अब फिर कहना क्या है ? ये सोचता हूँ,
दिल भी रख जाऊं, ऐसा कहता हूँ !
सच बोलने का वादा किया है,
झूठ कैसे बोल पाऊं ? ये सोचता हूँ !
अब बात आ कर रूकती है यहां,
होगा जो भी अंजाम, देख लेंगे !
इजाज़त आज सच बोलने की मिली है,
तो चलो आज फिर सच ही कह देंगे !