हवा
हवा
बसंती हवा झरी चली सब ओर,
पकड़ रही सब पौधो को लगा जोंर
अनोखी हवा हुई वावली मुँह छोर,
उडा लेती गोरी का पलू नही गौर
जाती ठंड में हुई मस्तमौला घनघौर
मस्त सी घूमे नही शीत न शौर
बालों को उडाती करती उतेजित भोर
पीलेपन की रंगत का हुआ खूब दौर
खेत खिले पहनी सरसों ने यूँ बसंती कौर
हँसी दिशाएँ बहती हवाएँ आंचल उड़े बेगौर,
माँ वाणी का गीत गाये स्वर ताल से झकझोर।