हत्यारे
हत्यारे


हे हत्यारे ! तूने एक नहीं अनेक मासूम बड़ी बेरहमी से मारे
लहूलुहान कर बेवजह छुरी-चाकू से दुष्कर्म किए इतने सारे।
शारीरिक व मानसिक रूप से किए तूने अनगिनत अपराध
एक पल के लिए भी दया न आई छोड़ा नहीं एक- आध
आखिर अपने जीते जी क्यों नहीं रहा तू गुणों को साध
खून से सने हाथों से निहत्थो पर वार करने की बढ़ादी तादाद।
वर्तमान में देख रही हूँ हो रहे हैं इतने वार
अपराध के हो रहे हैं भिन्न-भिन्न प्रकार
समाज के बदल चुके हैं आचार-विचार
कहीं भी नहीं दिखता अब सद्व्यवहार।
रिश्ते-नाते, सगे-संबंधी सब चोर नज़र आते हैं
डाकू, लुटेरे, किडनैपर चारों ओर नज़र आते हैं
हे प्रभु ! हमें बचा लीजिए इन दुष्कर्मियों से
इन निहत्थे लोगों के खून के प्यासे हत्यारों से।