हर्षिता ने मिट्ठी के साथ बिताए पल
हर्षिता ने मिट्ठी के साथ बिताए पल
आज यूँ ही बचपन से मुलाकात हो गई
ऑफिस के रास्ते में कुछ बच्चो से बातचीत हो गई।
कुछ मासूमियत से बातें करते रहे कुछ पूछते रहे,
कुछ बताते रहे, प्यारी प्यारी बातों से दिल को बहलाते रहे।
कुछ जिज्ञासु टिमटिमाती आंखों से कुछ पूछ रहे थे मुझसे
देखने में कुछ बेचारी सी थी पर
आंखों की चमक से वो सयानी सी थी
शर्मा थी वो, कुछ अपनी सी लगी।
लगा, मैं आज खुद के बचपन के सामने सी आ गई थी
ऐसी ही बाल थे मेरे, बहुत सी जिज्ञासा भी।
आंखो में कुछ करने की चाह लिए टिमटिमाती रहती थी
पूछ रही थी दीदी आप क्या करते हो, रोज़ ऑफिस जाते हो।
मै तो स्कूल जाती हूं, वो शायद 3 साल की बेटी थी
मेरे साथ बेठे बैठे बातों में बातें पूछती रही।
बड़ी जिज्ञासू सी लगी, पूछने पर बताया
मेरे को थोड़ा भुखार था इसलिए स्कूल नहीं गई।
पर फिर भी कुछ उदास कुछ शब्दों ने
प्यार दिखा रही थी नाम भी उसका मिष्ठी था।
नाम की तरह मीठी बाते करती रही
मैनें उनको चॉकलेट दी, प्यार भरी मुस्कान से उसके
मां बाबा ने सबने अलविदा किया।
मेरा ऑफिस आ गया था
मैंने उतर कर पीछे मुड़कर देखा तो वो कुछ
मायूस सी नजर आ रही थी।
चॉकलेट हाथ में लिए हाथ हिला रही थी
उसके माँ बाबा के मुख पर बड़ी सी मुस्कान थी।
जैसे खुशी से बोल रहे हो फिर मिलेंगे
पर ना जाने वो 10 मिनटों की मुलाकात फिर हो ना हो।
बस प्यार भरे शब्दो से भर लेती हूं अपने दिल को
अपनी रफ़्तार से बढ़ती ज़िन्दगी के कुछ पन्नों मैं
खुशियों के पल बटोर लेती हूं।
प्यार से भरी मुलाकातों को कैमरे में समेटे लेती हूं
मिष्ठी की मीठी यादों को पन्नों पे बिखेर लेती हूं।
संजो देती हूं शब्दो के मोतियों को इन किताबो के पन्नों में
जब मन करे पढ़ लेती हूं।
यही यादों के सहारे बस ज़िन्दगी
हँतेस खिलखिलाते निकाल रही है।
गम की परछाई को कुछ पलों के लिए
धूल सी उड़ा रही है।
वो याद करे या ना करे
उसके मां बाबा की कुछ दुआएँ आ सी रही है।
बस यूं ही ज़िन्दगी चल सी रही है
चल सी रही है।