ह्रदय में भाव सिरजकर
ह्रदय में भाव सिरजकर
आत्मा की ज्योति से प्रतिपल जगमग जले ;
हर हृदय भीगा हो सद्भाव, प्रेम की धार से !
सेवा, त्याग, बलिदान की एक होड़ लग गई ;
मुक्त हो जायेगी सारी धरा दु:ख के भार से !
पीड़ा पतन निवारण में निज सामर्थ्य लगायें ;
परहित सेवा भाव से धरती को स्वर्ग बनायें !
स्वच्छ शरीर , स्वच्छ मन, सभ्य समाज बनें ;
आत्मिक आनंद हेतु अखंड मशाल जलायें !
नव कल्पना, नव विचार, नव भाव सिरजकर ;
तजे निज स्वार्थ भाव को , श्रेष्ठ देवत्व भरकर !
द्वेष, दुर्गुण मिटें,सृजन साधना मन में धार कर ;
संत सेवा का मूल मंत्र -प्रेम भाव उर में जगाकर !
आज सामने है चुनौती जूझने की शक्ति लेकर ;
मान सम्मान मिले समर्पण का क्रम से बनाकर !
जब व्यक्ति ने ठान ली सेवा भाव की लगन भर ;
अब बीज बो कर फसल काटने का जतन कर !