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V. Aaradhyaa

Inspirational

4.7  

V. Aaradhyaa

Inspirational

ह्रदय में भाव सिरजकर

ह्रदय में भाव सिरजकर

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आत्मा की ज्योति से प्रतिपल जगमग जले ;

हर हृदय भीगा हो सद्भाव, प्रेम की धार से !

सेवा, त्याग, बलिदान की एक होड़ लग गई ;

मुक्त हो जायेगी सारी धरा दु:ख के भार से !


पीड़ा पतन निवारण में निज सामर्थ्य लगायें ;

परहित सेवा भाव से धरती को स्वर्ग बनायें !

स्वच्छ शरीर , स्वच्छ मन, सभ्य समाज बनें ;

आत्मिक आनंद हेतु अखंड मशाल जलायें !


नव कल्पना, नव विचार, नव भाव सिरजकर ;

तजे निज स्वार्थ भाव को , श्रेष्ठ देवत्व भरकर !

द्वेष, दुर्गुण मिटें,सृजन साधना मन में धार कर ;

संत सेवा का मूल मंत्र -प्रेम भाव उर में जगाकर !


आज सामने है चुनौती जूझने की शक्ति लेकर ;

मान सम्मान मिले समर्पण का क्रम से बनाकर !

जब व्यक्ति ने ठान ली सेवा भाव की लगन भर ;

अब बीज बो कर फसल काटने का जतन कर !

   


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