हर रोज सवेरा आता है।
हर रोज सवेरा आता है।
कितना गहन अंधेरा है, चाँद भी छुप गया ह
तारों ने आँखे मूंद ली, अमावस ने जब करवट ली।
मेरा मन घबरा रहा है, कोई आशय मुझे झुंझला रहा है
थामे रहना हाथ मेरा माँ, कोई विकट संकट लहरा रहा है
उठो खोलो अपनी आँखें, देखो बीती रात कमल दल फुले
चहक कर चिड़िया बोली, औऱ सूरज ने अपनी आंखें खोली।
हर रात का सवेरा होता है, बस उम्मीद की कश्ती बहती रहे
थक हार गए तो समझो बस, हर रात अमावस होती है।
भय बनकर मन अपना ही रोज तुम्हें डराता है,
बस मन को ये बतलाना, हर रोज सवेरा आता है।