हो गये पचहत्तर साल
हो गये पचहत्तर साल
भारत को आजाद हुए,
हो गये पचहत्तर साल।
जैसा अच्छा हो जाना था,
हो न सका वह हाल।
जनता को जमकर गया लूटा,
मिले थे जिनको कुछ अधिकार।
निभाई गई न जिम्मेदारी और,
किया गया हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार।
निर्बल- निर्धन को मदद के नाम पर,
करदाताओं का गया बहाया पैसा।
उन तक नहीं पहुंच वह पाया ,
बिचौलियों ने खाया जिसने पाया जैसा।
पारदर्शिता है हर तंत्र में जरूरी,
संग-संग जन जागरूकता का सवाल।
पारदर्शिता संग जन जागरण जरूरी,
तब ही सुधर सकेगा देश का बिगड़ा हाल।