हँसते-हँसाते
हँसते-हँसाते
सारे सबूतों को फीका पड़ते देखा है,
खून के आँसू पीते देखा है।
जीवन इतना दूभर है,
इसका दर्द देखा है।
खुद को नष्ट होते देखा है,
किसी को क्या जीवन,
इतनी गंभीरता से जीते देखा है।
दोस्त को भी,
दुश्मन बनाते देखा है।
जीना है तो हँसकर जिओ
मेरे यार।
दुश्मन को भी दोस्त बनाते,
चलो मेरे हमराज।
फिर न सबूतों की जरूरत होगी,
न आँसुओं की धारा बहेगी।
जीवन का हर दर्द,
मित्रता के भाव से ओझल होगा।
और सृष्टि का,
पतन कभी नहीं होगा।
हरसू रंगों का ताज होगा,
बस खुशियों का ही राज होगा।।