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हमसफ़र

हमसफ़र

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इतने सालों मे 

तुने कुछ कहा नहीं मुझसे 

पर मैं वो हमेशा  सुनती रही 

जो सुनना चाहती थी

हर ज़ख्म में मरहम 

खुद ही लगाती रही

बिना ख़्वाब दिखाए 

रोज़ एक नया ख्वाब बुनती रही

अश्क बहाती रही 

और खुद ही पोछती रही

हर नए दिन के साथ 

नयी उम्मीद जगाती रही

साल बीतते गए 

जख्म नासूर बन गए

अश्क सुख गए  

उम्मीद टूट गयी 

दिल जल कर राख़  हो गया

हमसफ़र तो हम बन गए 

पर हम अकेले सफ़र करते रहे


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