हमारी प्रकृति का सम्मान
हमारी प्रकृति का सम्मान
अब और रूकू व सहूं ये है नामुमकिन,
दिल नही करता कि अब मैं चुप रहूँ।
हिम्मत तो अब करनी पड़ेगी,
जो बचाना है प्रकृति को तो
पेड़-पौधो की रक्षा करनी होगी।
सीने में दबा अब ये लावा फूट कर रहेगा,
प्रकृति का और अपमान अब सहन ना होगा।
सोचा, जाना व अब ये ठाना है,
हर जन करे इससे प्यार, ये करके दिखाना है।
प्रकृति की रक्षा के लिये करना होगा कुछ खास,
ना रात को नींद ना दिन में चैन,
सपनों में भी महसूस करा ये अहसास।
किस तरह बचाये इस धरा, नदियों, सागर को,
इसका कब तक होगा उपहास।
राह दिखाये सच्चाई बनकर खुशियों की परछाई,
दीपक की लौ और आग रोशन अंधेरों के लिये होती है।
कर लो मानव अब तो प्रकृति का सम्मान,
वर्ना प्रकृति कर ना दे जुदा तन से हमारे प्राण।