"हमारी बाते"
"हमारी बाते"
हमारी बाते,उन्हें लगती है,बड़ी बुरी
जो झूठ,फ़रेब की खाते है,यहां पूड़ी
हमारी बाते,उन्हें लगती है,सत्यभरी,
जिनकी नियत होती है,यहां पर खरी
उन्हें कैसे लगेगी कोई दवा,कड़वी
जो बातें करते है,यहां चिकनी-चुपड़ी
ऐसे लोगो से रखना साखी सदा दूरी
मुँह में राम,बगल में रखते है,जो छूरी
हमारी बाते,उन्हें लगती है,बहुत बुरी
जो झूठ,फ़रेब की खाते है,यहाँ पूड़ी
जिनके जेहन में ईमानदारी है,भरी
वो अंधेरे में चमकते बनकर कोहिनूरी
उन्हें हर जगह लगती है,खुली-खुली
जो खुले विचारों की रखते है,गुरी
पर जो आलस्य की खाते है,धूली
उन्हें कभी न मिलती है,स्वर्ण अंगूठी
जो सत्य कर्म में दिखाते है,बहादुरी
उनकी जिंदगी सदा बनती है,सिंदूरी
हमारी बाते उन्हें लगती है,बहुत बुरी
जो झूठ,फ़रेब की खाते है,यहां पूड़ी
वो फ़लक के ज्यादा ऊंचे जाते है,
जो सत्य को ही सांसो में बसाते है,
उन्हें मिलती है,रब की सदा मंजूरी
जो इरादों में रखते है,परहित धुरी
इसलिये तू शूल की रख तैयारी पूरी,
इनसे मिलेगी फूल की हिफाजत पूरी
जो सत्य की मशाल लेकर चलते है,
उन्हें कभी नही लगती है,ठोकर बुरी
हमारी बाते उन्हें लगती है,बहुत बुरी
जो झूठ,फ़रेब की खाते है,यहाँ पूड़ी
वो गिरकर भी अक्सर संभल जाते,
जिन्हें पश्चताप-आग जलाती है,बुरी
वो नभ में पहुंकरकर भी गिर जाते,
जिन्हें अहम की आदत है,बड़ी बुरी
दुनिया मे तू साखी संभलकर चल,
लोग करते है,यहां पल-पल छल,
उन्हें मत बता,तू मन की बाते पूरी
जिनके दिल है,काजल की मजबूरी
हमारी बाते उन्हें लगती है,बहुत बुरी
जो झूठ,फ़रेब की खाते है,यहाँ पूड़ी
पर जिनके दिल पे लगती है,बाते बुरी
वो तुलसी,कालिदास बनकर बनाते है,
महान साहित्य मानस,शाकुंतलम सूरी।