हम तुम और चाँद
हम तुम और चाँद
दरिया के साहिल पर ठंडी रेत की सरसराहट
तलवों को चूमती रवानी देती है
मेरे तन में बहते लहू में तुम्हारी हथेलियों से
मेरे-रोम रोम को गर्माती उष्मा को
चाँदनी में नहाये मेरे तन पर तुम्हारा शबनमी
साया लिपट कर लेता है आलिंगन
अधरों पर अधरों के स्पर्श से उभरी मौन को
चिरती एक सिसकी निकल कर बैठ गई दो
उर की दहलीज़ पर
धड़कन से एक शोर बहने लगा मंद समीर संग
खेलता
एक आवारा बादल छा गया चाँद के वजूद
पर बनकर चद्दर चाहत की
शबनमी गीली रात में बहती साँसों की संदली
महक ने चाँद को भी प्रणय रंग में बहा दिया
आज बेहद खूबसूरत लग रही है रात
चाँद, तुम और मैं तीनों चल रहे है संग-संग
लो तारें शर्माते छुप गए आसमान के आँचल तले।।