हम ऐसे ही हैं
हम ऐसे ही हैं
आज बहुत ही मजेदार किस्म के,
व्यक्तित्व से अनायास ही मुलाकात हुई ।
लोगों का बहुत बड़ा जमावड़ा देखकर,
मैं भी भीड़ में शामिल हो गई।
सड़क पर एक व्यक्ति घायल पड़ा था,
और सौ सौ आँखें उसे घूर रहीं थीं ।
तभी बगल में खड़े एक व्यक्ति को,
कुछ लिखते देखा।
पूछने पर पता चला कि,
वह कविता बना रहा है,
वह भी उस घायल व्यक्ति पर,
और उस भीड़ पर जिसका वह स्वयं एक हिस्सा है ।
कविता की शुरुआत थी,
"घेर कर खड़े होने वाले तो बहुत है,
पर हालचाल पूछने वाला कोई नहीं।"
तब उन महाशय से हमने पूछा,
आप स्वयं क्या कर रहे हैं ?
आगे बढ़कर स्वयं मदद क्यों नहीं कर रहे हैं।
जवाब मिला मैं तो कवि हूँ,
मेरा काम कविता लिखना है,
और वही मैं कर रहा हूँ।
अगर मैं मदद करने के लिए जाऊँगा,
तो कविता कैसे रच पाएगी ?
तभी दिमाग में एक सवाल ने दस्तक की,
कि अगर ये सभी सो-सो आँखें,
कवि महाशयों की ही होती तो ?
खैर हम उन सभी के साथ हो लिए,
जो मदद के लिए आगे बढ़े थे।
और इस नेक काम को करने के लिए,
हमने स्वयं को धन्यवाद कहा ।