हिस्से का आसमान चाहती हूं
हिस्से का आसमान चाहती हूं
अपने हिस्से का मै आसमान चाहती हूं
एक टुकड़ा बादल और थोड़ी हवाएं चाहती हूं
चंद तारों की टिमटिमाहट चाहती हूं
चांद सूरज की चाह नहीं मुझे
चंद कतरे धूप के मैं खिड़की पर चाहती हूं
चंद बूंदे चांदनी के मैं हाथों में भर लेना चाहती हूं
अपने हिस्से का मै आसमान चाहती हूं ।
कभी खुशियां भी मेरा नाम पुकारती जाए गली में
कभी उम्मीदें भी मुझे रोके गली के मोड़ पे
अपने हिस्से के गम मै काट चुकी
थोड़ी हंसी की फसल अब बोना चाहती हूं
अपने हिस्से का मै ज़मीन चाहती हूं।
ख्वाहिशों का रेला नहीं
बस जरूरतें है छोटी-छोटी
कुछ सपने हैं कुम्हलाए हुए
सीच सकूं इन सपनों को
बस इतना पानी चाहती हूं
चाहती हूं चंद बूंदें बारिश की
मेरा आंगन की भिंगोए
इंद्रधनुष का एक छोटा हिस्सा
मेरा द्वार भी सजाए
बस इतना ही चाहती हूं
अपने हिस्से का मै पानी चाहती हूं।
कभी बातों कभी उलाहनो ने राह मेरा रोका
राह अपनी अब मैं खुद बनाना चाहती हूं
गुजर रही जिंदगी सिर्फ समेटते सहेजते
अपने हिस्से का जीवन अब मैं जीना चाहती हूं।
चाहती हूं अपने हिस्से का जमीन
और पानी अपने हिस्से का चाहती हूं
अपने हिस्से का मै आसमान चाहती हूं।