हिंदुस्तानी श्रमिक की घर वापसी
हिंदुस्तानी श्रमिक की घर वापसी
चल पड़ा हूं अपनी राह पर
मैं निरंतर चलता ही जाऊंगा
मैं हिंन्दुस्तानी श्रमिक हूं साहब
एरोप्लेन, हेलिकॉप्टर से नहीं,
पैदल ही घर को जाऊँगा
सरकार ने हमे सुविधा दी है
तपते जिस्म को शबनम दी है
पर मैं कर्मवीर हूं ज़नाब
एक पल देर न लगाऊंगा
पथ पर लगातार चलते जाऊंगा
बच्चे को जन्म दूंगी सड़क पर
हिंन्दुस्तानी बेटी हूं, साहब
फिर भी 160 किमी चल जाऊंगी
राह चलते जब पैसा खत्म हुआ
एक बैल को बेच, बैैल की जगह
खुद के बेटे की जोत जाऊँगा
मैं हिंदुस्तानी मजदूर हूं, साहब
फिऱ भी मैं घर तो जाऊंगा
भूख से भले मर जाऊं,
कोरोना से न डरूंगा
मैं पथिक हूं,
मैं श्रमिक हूं
मैं अविराम चलता जाऊंगा
मैं अपने घर जरूर जाऊंगा
दिये की जगह आज,
खुद का दिल जलता है
सबका भला किया है, मैंने
न जाने कितनी,
बिल्डिंग बनाई मैंने
न जाने कितने,
ईंट-भट्टों पर काम किया मैंने
न जाने कितनी,
जगह पानी पूरी बेची मैंने
न जाने कितनी,
जगह आइसक्रीम बेची मैंने
फिर भी किसी ने साथ न दिया
सरकार ने जरूर मेरा साथ दिया
कुछ पैसा जरूर खाते मैं डाल दिया
पर मैं श्रमिक हूं, न साहब
इतना ज्ञान मुझे कहाँ है,
मैं तो निरन्तर कदम बढ़ाऊंगा
मैं अपने घर को पैदल ही जाऊँगा।
