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Shubham Gupta

Drama

2  

Shubham Gupta

Drama

हिम्मत नहीं थी !

हिम्मत नहीं थी !

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हिम्मत नहीं थी अंदर,

कि तुमसे कुछ बोल जाऊँ,

पर सोचा तो बहुत,

कि तुमसे वो सब कह जाऊँ,


पर हिम्मत नहीं थी न अंदर,

कि तुमसे कुछ भी बोल जाऊँ !


सोचा कि अब इस सोच को,

क्यूँ न कल अंजाम तक पहुँचाऊँ,

हिम्मत जुटा कर कल ही,

तुमसे सब कुछ बोल जाऊँ,


शीशे के सामने बस तुझको महसूस कर,

अपनी हिम्मत को बढ़ा जाऊँ !


बस अब बस कल के इंतज़ार में,

सारा वक़्त मैं यूँ ही काट जाऊँ,

सोया तो मैं नहीं उस रात,

बस क्यों न करवटें बदल कर ही

वक़्त को गुज़ार जाऊँ,


रात कि इस कालिमा को,

बस, अब मैं जल्दी ही,

सुबह के उजाले में देखना चाहूँ,


कब दिन हो और बस,

मैं यूँ ही खिलखिला जाऊँ !


हाँ, आज कुछ अलग ही बात थी,

क्युँकि हिम्मत कि जो बात थी,

बस निकल पड़ा मैं भी,

अपनी हिम्मत का इम्तेहान लेने,


बस थोड़े से ही पलो में,

आई वो मेरे सामने,

तब मैंने सोंचा हाँ, बस अब, हाँ,

बस अब तो हिम्मत से काम ले जाऊँ !


लेकिन बस पता नहीं क्यों,

उसके सामने आते ही,

डगमगा गए मेरे हिम्मत के कदम,


लो देखो अब फिर से,

हिम्मत बची नहीं अंदर,

कि तुमसे कुछ कह जाऊँ,

फिर वही सोच,

चलो किसी और दिन ही सही,

तुमसे वो सब कह जाऊँ,


पर संदेह में था कि,

क्या फिर भी होगी हिम्मत अंदर

कि तुमसे उस दिन भी,

सब कुछ बोल जाऊँ !


बस यूँ ही समय बीतता रहा,

यूँ ही दिन बीतते रहे,

हर बार सोचा कि,

तुमसे अब तो कुछ बोल जाऊँ,


शायद कोई दिन,

वो आखिरी मुलाकात न बन जाये,

बस शायद इसी डर से ही,


किसी दिन मैं,

हिम्मत नहीं जुटा पाया कि,

तुमसे कुछ भी बोल जाऊँ ! !


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