हे मुकुंद मुरारी
हे मुकुंद मुरारी
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हे गिरी धारी मुकुंद मुरारी
न धरियो अबगुण मोरी !
मैं तो हूँ एक नन्हा सा हिस्सा
इस विराट जगत में तुम्हरी !!
कबहुँ पडत कबहुँ उठत
कबहुँ चलत कछु वाट
हर पग सुनु तुम्हारी आहट
तुम्हीं हो तो साथ साथ
सांसारि खेला में कब अगर उलझूं
क्षमा करियो दोस हमारी !!
यह दुनियां मेला और रखवाला
तुम्हीं तो हो नटवर !
तुम्हीं नचाते हो अपनी ही रास में
मैं प्रेमी, तुम प्रेम का सागर
दुनियां के आंधी में अगर फस जाऊ
उधारियो सरण तुम्हरी
है मुकुंद मुरारी !!