हार की जीत
हार की जीत
नंगे पांव कुछ ढूंढता हूं, तलहटी पर।
लुड़क लुड़क, ऐसे आया, यही पर।
आखिरी बार नज़र आया जिस मोड़ पर,
कई बार देखा उस मोड़ को।
हार मानता, नहीं नहीं,
पर वो मिलता ही नहीं।
बैठ गया मैं, थक हार कर,
लटका दिखा वो एक झाड़ पर।
अरे यह तो मैं ही हूं
लटका देह के झाड़ पर।
भूल भुलैया,यह दुनिया
हारना ज़रूरी, खुद को गर है पाना
मदहोश करती जीत दुनियावी,
हारा जो, खुद को जाना, खुदा को जाना।