हाँ मैंने देखा है
हाँ मैंने देखा है
हाँ मैं कभी कभी
असुरक्षित हो जाती हूँ
और अपनी ही सोच से
परेशान हो जाती हूँ
मेरा यक़ीन डगमगा जाता है
तुम जरा सा दूर होते हो
तो परेशान हो जाती हूँ
और बेताब होकर
तुम्हें ढूंढने लगती हूँ।
मानती हूँ कि
प्यार में एक दूसरे पर
विश्वास होना जरूरी है
लेकिन मैं ख़ुद ही कई
बार शंकाओं से घिर जाती हूँ...
क्योंकि
मैंने देखा है
हाँ मैंने उन लोगों को
बदलते हुए देखा है
जो ज़िंदगी भर साथ
निभाने का दम भरते थे
मैंने वादों को टूटते देखा है
लोगों का साथ छूटते देखा है
उम्मीदें बढ़ाकर फ़िर कुचलना देखा है
और सबसे बड़ी बात
लोगों का चुपचाप बिन कुछ बोले
चल निकालना देखा है
उस सदमे को सहा है
और फिर दर्द, बेबसी
और मायूसी को जिया है
बिना अपना क़ुसूर जाने
सज़ाओं को भुगता है
इसीलिए डरती हूँ
तुम्हें खोने से डरती हूँ
तुम हाल बताते रहो
कोई बात दिल में न रखो
हक से
कहते रहो,
नाराज़गी भी
और अपने फ़ैसले भी !