गुलाल से मलाल कैसा?
गुलाल से मलाल कैसा?
प्रेम का रंग बेरंग
मैं, रंगों के अवशेष
लाने की कोशिश करती हूँ
गर हो सके,
तो क्या तुमने कभी चूमा है ?
बैठी तितली के पीले पँखों को
ओर वो पलक झपकते उड़ जाती है और
छोड़ जाती है, पँखों से पीला इतर
रंग स्थाई कहाँ ?
वे तो उड़ ही जाते हैं,
वे तो केवल बेरंग जिंदगी में
अपना अस्तित्व छोड़ते हैं
गर हो सके,
तो क्या किसी साँझ इंद्रधनुष के
सात रंगों के परावर्तन को देखा है?
क्या कभी चलते चलते उन रंगों
से अपने ख्वाहिशों की चटपटी
बातें बताई है ?
गर नहीं तो फिर किस रंग की
बात करते हो तुम
तुमने रंग देखा ही कहाँ है ?
तुमने रंग को स्पर्श किया ही कहाँ है ?
चार रुपइया का गुलाल खरीदकर
कहते हो, होली मुबारक।