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Riya Gupta

Abstract Tragedy Classics

4.5  

Riya Gupta

Abstract Tragedy Classics

गरीबों को मरते देखा है

गरीबों को मरते देखा है

1 min
18


मैंने गरीबों को मरते देखा है,

डर से सिहरते देखा है

अमीरों के ताव से डरते देखा है,

मैंने गरीबों को मरते देखा है।


जूठा खाते, जूठा उठाते,

ठंड में कपकपाते देखा है

भूख से उन्हें तड़पते देखा है,

मैंने गरीबों को मरते देखा है।


लोगों के आगे गिड़गिड़ाते देखा है,

चलते-चलते लड़खड़ाते देखा है

अपना पेट काट कर उन्हें सोते 

देखा है, 

मैंने गरीबों को मरते देखा है।


सर्दी हो या गर्मी उन्हें बोझा ढोते

 देखा है,

चंद पैसों के लिए मेहनत करते देखा है

भूख से बच्चों को रोते बिलखते 

देखा है,

मैंने गरीबों को मरते देखा है।


यह कविता उन्हें समर्पित है जो दिन-रात,

कड़ी धूप में भी मेहनत करते हैं।

न की उन्हें जो भीख मांगकर,

अपना पेट भरते देखा है।


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