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अजय एहसास

Others

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अजय एहसास

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गरीब

गरीब

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कोई ना जाना चाहता उसके करीब 

रुपए, पैसे नहीं , जो है गरीब ।


कह रहे हैं वो 

गरीबी दूर होगी 

थक कर हालत भी 

उसी की चूर होगी 

झोपड़ी में भी 

अब कोहिनूर होगी 

रोटियों से दूर होता वो गरीब 

कोई ना जाना चाहता उसके करीब।


ना बड़े सपने है उसके 

ना कोई अपना लगे 

खुद बनाता महल को 

पर रहना तो सपना लगे

कहते रहे सुनते रहे 

कुछ कहना ना सुनना लगे 

ना कभी कहता बस सुनता वो गरीब 

कोई ना जाना चाहता उसके करीब।


खून भी वह बेच देता 

कुछ कमाने के लिए 

वो तरस जाता सभी का

प्यार पाने के लिए 

सोचता कई बार है 

दरबार जाने के लिए 

महलों में जाने से भी है हिचकिचाता वो गरीब

कोई ना जाना चाहता उसके करीब।


सैकड़ों ही जिल्लते 

रोज ही वह झेलता है 

उसका बेटा 

धूल से ही खेलता है 

चंद खुशियों के लिए 

वो पत्थरों को धकेलता है 

पत्थरों को काटकर राहें बनाता है गरीब 

कोई न जाना चाहता उसके करीब ।


दर्द दुनिया से मिले

फिर भी उसे वो सहता है

हो अगर बीमार तब भी 

ना किसी से कहता है 

मिट्टी की दीवार सा 

वो पाता खुद को ढहता है 

करके मेहनत चार बच्चे पालता भी है गरीब

कोई न जाना चाहता उसके करीब ।


वह ना देखें धूप कितनी

या कि कितनी गर्मी है 

कपड़े भी तो है नहीं 

वह झेलता यूं सर्दी है 

बेरहम दुनिया है यह 

ना किसी को हमदर्दी है 

कंपन,पसीना इन सभी से जूझता है वो गरीब

कोई न जाना चाहता उसके करीब ।


दुनिया वाले दर्द का 

उसके भी तू "एहसास" कर 

उसको खिलाने के लिए 

तू एक दिन उपवास कर 

ऊपर वाले कभी आकर 

उसके घर में वास कर 

हर घड़ी तुझको बुलाता वो गरीब 

कोई न जाना चाहता उसके करीब।


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