गरीब हूँ साहब
गरीब हूँ साहब
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गरीब हूँ साहब पर दिल बड़ा है
जो दिन भर कमाया वही पड़ा है
अपनी रोटी में आधा दे सकता हूँ
धन दौलत अपने पास कहाँ पड़ा है
रोज कुआं खोद पानी पीना
यही काम है अपना
घर का छप्पर टूटा है
सरकार भी कहा पूरा करे घर का सपना
नाम भी आया पर काम न हुआ
क्यों की घूस के पैसे ? कहाँ इंतजाम है अपना
कुछ इधर उधर कर दिया भी
तो उन्हें कम लगता है
अब तो बारिश में रात जाग के कटे
यही निजाम है अपना
गरीब हूँ साहब पर दिल बड़ा है
जो दिन भर कमाया वही पड़ा है..